A poem by Samyak Shah
दो दिन की है ख्वाहिश
पल भर का है ख्वाब
हासिल हुआ तोह ख़ुशी
अगर नहीं तोह फिर शराब
लबों से निकलती तारीफ़ उसकी
रात को आते उसी के ख्वाब
हकीकत अगर हुए तोह ख़ुशी
अगर नहीं तोह फिर शराब
आए गुस्सा मुझे
तब रहम करना उसपे जनाब
काबू किया खुद पे तोह ख़ुशी
अगर नहीं तोह फिर शराब
चले जाओगे तोह गिर जायेंगे
फिर उठ न पायेंगे साहब
न बनाया उसे सहारा तोह ख़ुशी
अगर नहीं तोह फिर शराब
चलना किया जब शुरू अकेले
तोह साथ का क्यों देखे ख्वाब
अगर मिल जाए सहारा तोह ख़ुशी
अगर नहीं तोह फिर शराब
Nice
ReplyDeleteअतिउत्तम।
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