Saturday, October 13, 2018

मर्दाना

A poem by Samyak Shah

नहीं आती करनी लड़ाई
और ना है मेरे इस डर का ठिकाना
तोह
लोगों के लिए, मैं नहीं हूँ मर्दाना


नहीं बदल सकता गाड़ी के टायर
ना आता है हर बात पे सख्ती दिखाना
तभी शायद
लोगों के लिए, मैं नहीं हूँ मर्दाना


आता है कई बातों पर रोना
पर खुल के रो भी नहीं सकता 
क्यूंकि क्या कहेगा ज़माना
की 
मैं नहीं हूँ मर्दाना


ना है 16 का डोला 
ना है 56 की छाती
पर क्योंकि नहीं चाहता घर के बर्तनों को खड़काना
लोगों ने कहा, मैं नहीं हूँ मर्दाना


समय को हम बदल दिए
तौर-तरीके भी बदल दिए
पर सोच को हमने बदला ना
तभी कह रहे है
लोगों के लिए, मैं नहीं हूँ मर्दाना
लोगों के लिए, मैं नहीं हूँ मर्दाना